यहां पांचवीं के बाद बच्चे छोड़ देते हैं पढ़ाई, पोषाहार के लिए भी शिक्षकों और बच्चों को करनी पड़ रही मशक्कत
मोहित शर्मा/ उदयपुर.
सरकार भले ही शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सबको शिक्षित करने की बात करे या फिर सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने की, ये सब बातें यहां आकर बेमानी साबित हो रही हैं। हम बात कर रहे उदयपुर मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित खेरा खेत गांव की। डाकन कोटड़ा ग्राम पंचायत के गांव खेरा खेत में आज भी बच्चे पांचवीं के बाद पढ़ाई नहीं करते। कारण हैं गांव में पांचवीं तक का ही स्कूल है। इसके बाद करीब 5 किलोमीटर तक कोई आठवीं या दसवीं का स्कूल नहीं है। साथ ही आने जाने के लिए कोई साधन भी नहीं हैं। गांव वालों का कहना है कि यहां आए दिन जंगली जानवरों का आतंक रहता है, जिसकी वजह से भी वे दूर अपने बच्चों को पढऩे नहीं भेज सकते।
यहां सरकार और विभाग को भी बच्चों के भविष्य को लेकर कोई चिंता नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि कई बार जनप्रतिनिधियों से भी इस संबंध में बात की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।
ये हैं हालात
राजकीय प्राथमिक विद्यालय खेरा खेत में 48 का नामांकन है। इसमें से 9 बच्चे पांचवीं की परीक्षा दे चुके हैं। उन्हें अब कक्षा 6 में प्रवेश लेना है, लेकिन वे अब आगे पढ़ाई नहीं कर सकेंगे। परिजनों का कहना है कि गांव से 4-5 किलोमीटर के क्षेत्र में कोई आठवीं का स्कूल नहीं है। दूर पढऩे जाने के लिए कोई साधन भी नहीं है। जंगली जानवरों का भी यहां आतंक है, जिसकी वजह से अभिभावक अपने बच्चों को दूर पढऩे नहीं भेजते।
शिक्षक सिर्फ एक
राजस्थान पत्रिका ने पड़ताल ने पाया कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय खेरा खेत में सिर्फ एक ही शिक्षक है। पोषाहार लेने जाना हो, किताबें लेने या फिर विभागीय कार्यालय से संबंधित कोई भी छोटा-बड़ा काम, स्कूल की छुट्टी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। अधिकारी दबी जुबान में बताते हैं कि रास्ता खराब होने से यहां कोई शिक्षक आना ही नहीं चाहता।
पोषाहार के लिए भी मशक्कत
विद्यालय में पोषाहार खाने से पहले शिक्षक और बच्चों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। सप्लायर विद्यालय से करीब 5-6 किलोमीटर दूर धूल की पाटी विद्यालय में पोषाहार के गेहूं और चावल छोड़ जाता है।
रास्ता खराब होने की वजह से वह यहां तक नहीं आता। मजबूरी में शिक्षक को पोषाहार अपने स्कूटर पर रखकर यहां लाना पड़ता है। दूसरा कोई गाड़ी वाला भी यहां नहीं आना चाहता। रास्ता ऊबड़ खाबड़ और पथरीला होने से स्कूटर नहीं चलता है। एेसे में विद्यालय के बच्चों को पोषाहर का खाद्यान स्कूल तक पहुंचाने के लिए शिक्षक के स्कूटर को धक्का लगाना पड़ता है। परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, पोषाहार के गेहूं स्कूल पहुंचने के बाद पिसवाने के लिए यही प्रक्रिया दोहराई जाती है।
पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ रहे बच्चे
पोषाहर सामग्री लाने के लिए करीब 6 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। कई बार अधिकारियों को बताया, कोई सुनवाई नहीं होती। उच्च प्राथमिक विद्यालय नहीं होने से इस गांव के बच्चे 5 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं।
सुरेश पटेल, शिक्षक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, खेरा खेत
उच्च प्राथमिक स्कूल नहीं
करीब 4-5 किलोमीटर के एरिया में उच्च प्राथमिक स्कूल नहीं है, जिसकी वजह से बच्चे 5 वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। हमने इस संबंध में उच्चाधिकारियों को अवगत कराया है।
वीरेन्द्र यादव, ब्लॉक प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी, गिर्वा
सरकार भले ही शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सबको शिक्षित करने की बात करे या फिर सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने की, ये सब बातें यहां आकर बेमानी साबित हो रही हैं। हम बात कर रहे उदयपुर मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित खेरा खेत गांव की। डाकन कोटड़ा ग्राम पंचायत के गांव खेरा खेत में आज भी बच्चे पांचवीं के बाद पढ़ाई नहीं करते। कारण हैं गांव में पांचवीं तक का ही स्कूल है। इसके बाद करीब 5 किलोमीटर तक कोई आठवीं या दसवीं का स्कूल नहीं है। साथ ही आने जाने के लिए कोई साधन भी नहीं हैं। गांव वालों का कहना है कि यहां आए दिन जंगली जानवरों का आतंक रहता है, जिसकी वजह से भी वे दूर अपने बच्चों को पढऩे नहीं भेज सकते।
यहां सरकार और विभाग को भी बच्चों के भविष्य को लेकर कोई चिंता नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि कई बार जनप्रतिनिधियों से भी इस संबंध में बात की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।
ये हैं हालात
राजकीय प्राथमिक विद्यालय खेरा खेत में 48 का नामांकन है। इसमें से 9 बच्चे पांचवीं की परीक्षा दे चुके हैं। उन्हें अब कक्षा 6 में प्रवेश लेना है, लेकिन वे अब आगे पढ़ाई नहीं कर सकेंगे। परिजनों का कहना है कि गांव से 4-5 किलोमीटर के क्षेत्र में कोई आठवीं का स्कूल नहीं है। दूर पढऩे जाने के लिए कोई साधन भी नहीं है। जंगली जानवरों का भी यहां आतंक है, जिसकी वजह से अभिभावक अपने बच्चों को दूर पढऩे नहीं भेजते।
शिक्षक सिर्फ एक
राजस्थान पत्रिका ने पड़ताल ने पाया कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय खेरा खेत में सिर्फ एक ही शिक्षक है। पोषाहार लेने जाना हो, किताबें लेने या फिर विभागीय कार्यालय से संबंधित कोई भी छोटा-बड़ा काम, स्कूल की छुट्टी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। अधिकारी दबी जुबान में बताते हैं कि रास्ता खराब होने से यहां कोई शिक्षक आना ही नहीं चाहता।
पोषाहार के लिए भी मशक्कत
विद्यालय में पोषाहार खाने से पहले शिक्षक और बच्चों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। सप्लायर विद्यालय से करीब 5-6 किलोमीटर दूर धूल की पाटी विद्यालय में पोषाहार के गेहूं और चावल छोड़ जाता है।
रास्ता खराब होने की वजह से वह यहां तक नहीं आता। मजबूरी में शिक्षक को पोषाहार अपने स्कूटर पर रखकर यहां लाना पड़ता है। दूसरा कोई गाड़ी वाला भी यहां नहीं आना चाहता। रास्ता ऊबड़ खाबड़ और पथरीला होने से स्कूटर नहीं चलता है। एेसे में विद्यालय के बच्चों को पोषाहर का खाद्यान स्कूल तक पहुंचाने के लिए शिक्षक के स्कूटर को धक्का लगाना पड़ता है। परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, पोषाहार के गेहूं स्कूल पहुंचने के बाद पिसवाने के लिए यही प्रक्रिया दोहराई जाती है।
पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ रहे बच्चे
पोषाहर सामग्री लाने के लिए करीब 6 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। कई बार अधिकारियों को बताया, कोई सुनवाई नहीं होती। उच्च प्राथमिक विद्यालय नहीं होने से इस गांव के बच्चे 5 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं।
सुरेश पटेल, शिक्षक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, खेरा खेत
उच्च प्राथमिक स्कूल नहीं
करीब 4-5 किलोमीटर के एरिया में उच्च प्राथमिक स्कूल नहीं है, जिसकी वजह से बच्चे 5 वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। हमने इस संबंध में उच्चाधिकारियों को अवगत कराया है।
वीरेन्द्र यादव, ब्लॉक प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी, गिर्वा
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